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“मैं करता रहा हूंँ भला धीरे धीरे” रियाज खान गौहर की खास रचना

ग़ज़ल

मैं करता रहा हूंँ भला धीरे धीरे
वो करते रहें हैं जफा धीरे धीरे

मुझे वो भुलाने लगा धीरे धीरे
वो मुझसे तो जलता रहा धीरे धीरे

मुसीबत जो हम पे पड़ी देख लो तुम
खुदा याद आने लगा धीरे धीरे

ये नफ़रत की आँधी कभी क्या रुकेगी
वतन सारा जलता रहा धीरे धीरे

किसी की दुआ का असर है ये शायद
कि पाने लगा मैं शिफा धीरे धीरे

ख़ता याद आने लगी उसको शायद
वो फिर पास आने लगा धीरे धीरे

मिली बे सबब ही सज़ा आज उसको
सज़ा काटता वो रहा धीरे धीरे

उसे याद आने लगी अपनी मंज़िल
वो मंज़िल की जानिब चला धीरे धीरे

क़लम अब भी चलता है गौहर का यारो
ये अश‌आर लिखता रहा धीरे धीरे

ग़ज़लकार
रियाज खान गौहर भिलाई छत्तीसगढ़

1003457477 "मैं करता रहा हूंँ भला धीरे धीरे" रियाज खान गौहर की खास रचना

ग़ज़ल

मिलें जो भाई जैसे दोस्ती नहीं मिलती
लड़े तो भाई जैसे दुश्मनी नहीं मिलती

मैं चाहूँ रौशनी तो रौशनी नहीं मिलती
बगै़र रन्जो अलम के खुशी नहीं मिलती

यही तो हाल है देखो ज़रा ज़माने का
चली गई है जो इज़्ज़त कभी नहीं मिलती

खुदा जो चाहता है बस वही तो होता है
किसी के चाहने से रौशनी नहीं मिलती

जो बात मुहँ से निकल आ गई कभी बाहर
हमें वो लौट के वापस कभी नहीं मिलती

नहीं जो चाहते उनको मिले भी कैसे कुछ
खुदा की उनको कभी बन्दगी नहीं मिलती

हमेशा वक्त पर अपने जो काम आता हो
कभी तो ऐसी हमें दोस्ती नहीं मिलती

किसी के हक़ को दबाने से कब भला भी हुआ
किसी की छींन के खुशियांँ खुशी नहीं मिलती

खुदा की राह पर चलते ज़रूर हम गौहर
अंधेरा राह में है रौशनी नहीं मिलती

1003457499 "मैं करता रहा हूंँ भला धीरे धीरे" रियाज खान गौहर की खास रचना

ग़ज़लकार
रियाज खान गौहर

भिलाई छत्तीसगढ़

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