रायपुर। चालू खरीफ सीजन में ही किसानों को धान की कीमत 3100 रुपए प्रति क्विंटल देने की मांग करते हुए प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि मोदी की गारंटी यानी किसानों के साथ धोखा है जो प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद दिखाना शुरू हो गया है. अनुपुरक बजट में 3100 रू. में धान खरीदी के लिये किसी प्रकार से बजट नही रखा गया है। कांग्रेस सरकार के दौरान प्रदेश के किसानों को धान की सबसे ज्यादा कीमत मिलता था जो देश के किसी भी राज्य में नहीं मिलता था. मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार किसानों से वादा अनुसार 3100 रू क्विंटल की दर से धान की खरीदी करने से पीछे हट रही है. चालू खरीफ सीजन में किसानों को धान की कीमत मात्र 2183 रुपए ही मिलेगा. एक ओर किसानों को पूर्व कांग्रेस सरकार के समय मिलने वाली धान कीमत 2800 रू. प्रति क्विंटल नहीं मिलेगी. दूसरी ओर जैसे ही किसान धान बेचते हैं धान की राशि को कर्ज में समाहित कर दिया जा रहा है जो किसानों के लिये आर्थिक आपदा हैं
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि भाजपा की डबल इंजन की सरकार से किसानों को डबल चोट पहुंच रहा है एक ओर किसानों को धान की कीमत समर्थन मूल्य से ज्यादा नहीं मिल रहा है दूसरी ओर कांग्रेस सरकार के दौरान न्याय योजना के लिए रखी गई चौथी किस्त की राशि भी भाजपा की सरकार डकार कर किसानों के साथ अन्याय कर रही है. धान के बकाया बोनस के नाम से भी प्रदेश के किसानों के साथ छल किया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष 6 लाख किसानों को ही धान का बकाया बोनस प्राप्त होगा यानि दो साल में मात्र 12 लाख किसान को और 27 लाख किसान खाली हाथ रहेंगे. कांग्रेस सरकार में 27 लाख किसानों को 5 वर्षों में लगभग 24000 करोड़ से अधिक की राशि मिला था।
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस सरकार के दौरान ही किसानों से प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदी की शुरुआत हो गई थी किसानों को 2800 से अधिक कीमत मिल रहा था अब भाजपा की सरकार एक क्विंटल अतिरिक्त धन खरीदी करके खुद के हाथ से खुद का पीठ थपथपा रही है लेकिन 3100 रुपए धान की कीमत देने पर मौन है यह प्रदेश के 27 लाख से अधिक धान उत्पादक किसानों के साथ धोखा है भाजपा की सरकार बनने के बाद अब किसानों की आर्थिक स्थिति खराब होगी और भाजपा के संरक्षण में भू माफिया किसानों की खेती बाड़ी को खरीदने के लिए सक्रिय होंगे।