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CG : क्या कांग्रेसी कर रहे भाजपा में प्रवेश ? अस्तित्व बचाने की होड़ में, आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी …

रायपुर। विधानसभा चुनाव में अब साल भर से कम का समय बचा है | ऐसे में सभी पार्टी सक्रिय हो गई है और अपने जीत के दावे कर रहे है | चुनाव में भले साल भर का समय है लेकिन बयानबाजी ने अभी से जोर पकड़ लिया है | रोज नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है | दरअसल बस्तर में सैकड़ों कांग्रेसियों ने भाजपा पशामिल हुए जिन्हे कि भाजपा कांग्रेस से मोहभंग बताते हुए कांग्रेस का 2023 में जाना तय बता रही है | तो इस पर कांग्रेस भी मौन नहीं रहे और कहा पंचायत चुनाव भाजपा नहीं जीत पा रही है और सपने विधानसभा चुनाव में जीत के देखते है | खैर आरोप प्रत्यारोप अपनी जगह है पर तय तो जनता करेगी की कांग्रेस को और मौका देगी या परिवर्तन चाहती है |

भाजपा प्रदेश महामंत्री व छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने बस्तर विधानसभा में सैकड़ों ग्रामीणों सहित कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने को क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जम्वाल का प्रभाव बताते हुए कहा कि भाजपा के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री बस्तर में जिस तरह से सक्रिय हैं, उसका सकारात्मक परिणाम भाजपा को मिल रहा है।इसकी तस्दीक यह है कि सैकड़ों ग्रामीणों के साथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने बस्तर में भाजपा की नीतियों से सहमत होते हुए पार्टी में प्रवेश किया है । भली-भांति समझ गए हैं कि 4 साल में कांग्रेस की सरकार ने आदिवासियों सहित सभी वर्गों के साथ धोखेबाजी के अतिरिक्त कुछ नहीं किया । राज्य प्रगति कर रहा था, भूपेश बघेल की सरकार ने छत्तीसगढ़ को रिवर्स गियर में डाल दिया। वही केदार कश्यप के बयान पर मंत्री कवासी लखमा ने कहा केदार कश्यप जैसा फर्जी आदिवासी दुनिया में कहीं नहीं देखा | उनको बस्तर के लोग पहले ही छोड़ चुके | बीजेपी के लोग जनपद चुनाव के लिए फॉर्म नहीं भर पा रहे हैं | उनके कार्यकाल में 7 सौ गांव खाली हुए ये चुप बैठे थे। वे सुकमा के प्रभारी मंत्री रहे कभी बाय कार नहीं गए | अजय जामवाल आजकल कार में घूम रहे, ये बताता है कि भूपेश सरकार के राज में बदलाव हुआ,
उनको थोड़ी भी शर्म है तो वे राजनीति छोड़ दे |

सबसे बड़ा सवाल यह उठता है की आने वाले 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं ,नेता अपनी साख को बचाने के लिए जनता के हित की बात ना करके आज भी आदिवासी नेता खुद को बचाने की होड़ में लगे हैं। आदिवासी के हक की लड़ाई के बजाय दोनों स्वयं के अस्तित्व को बचाने की कोशिश में है।

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