रायपुर/छठ पर्व का मुख्य व्रत षष्ठी तिथि को रखा जाता है, लेकिन यह पर्व चतुर्थी तिथि से आरंभ होकर सप्तमी तिथि को सुबह सूर्योदय के समय अर्घ्य देने के बाद समाप्त होता है। चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत का समापन आज उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद समापन हुआ। मान्यता है कि छठ व्रत संतान की खुशहाली व तरक्की की कामना के साथ रखा जाता है।
छठ पूजा का पौराणिक महत्व
छठ पर्व की एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी की कोई संतान नहीं थी। इसे लेकर राजा और उसकी पत्नी हमेशा दुखी रहते थे। संतान प्राप्ति की इच्छा के साथ राजा और उसकी पत्नी महर्षि कश्यप के पास पहुंचे। महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराया और इसके फलस्वरूप प्रियव्रत की पत्नी गर्भवती हो गई। लेकिन नौ महीने बाद रानी ने जिस पुत्र को जन्म दिया वह मरा हुआ पैदा हुआ। यह देखकर प्रियव्रत और रानी अत्यंत दुखी हुए। संतान शोक के कारण राजा ने पुत्र के साथ ही श्मशान पर स्वयं के प्राण त्यागने व आत्महत्या करने का मन लगा बना लिया। जैसे ही राजा स्वयं के प्राण त्यागने को कोशिश की वहां एक देवी प्रकट हुईं, जो कि मानस पुत्री देवसेना थीं। देवी ने राजा से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं। उन्होंने कहा, मैं षष्ठी देवी हूं, यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं पुत्र रत्न प्रदान करुंगी। राजा ने देवी षष्ठी की आज्ञा का पालन किया और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी के लिए पूरे विधि-विधान से व्रत रखकर पूजा की। देवी षष्ठी के आशीर्वाद से राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि राजा ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह व्रत किया था। और इसके बाद से ही छठ पूजा आरंभ हुई।
ब्रह्नवैवर्तपुराण और देवी भागवत के अनुसार, प्रकृति, आद्या महाशक्ति का छठा अंश होने के कारण इन देवी को षष्ठी कहा जाता है। वात्सल्यमयी षष्ठी देवी बच्चों की रक्षिका एवं आयुप्रदा हैं। बच्चे के जन्म के छठे दिन इन्हीं की पूजा छठी उत्सव के माध्यम से होती है। हर महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को इनकी पूजा की जाती है लेकिन चैत्र व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का विशेष महत्व है। बसंत ऋतु में चैती छठ से शरद ऋतु की कार्तिकी छठ को विशेष महत्व मिला है। स्कंद पुराण में इस व्रत की महिमा व पूजा विधि वर्णित है।