जानिए तुलसी पूजा पर्व का महत्व
भारत वैसे भी त्योहारों का एक सनातन देश है l और क्रम में आता है तुलसी पूजा पर्व का त्योहार जो दिवाली के बाद आता है । इस तुलसी पूजा में ऐसी मान्यता है इस प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने का शयन काल पूरा करने के बाद जागते हैं,पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीहरी ने शंखासुर नाम के दैत्य का वध किया था. दोनों के बीच काफी लंबे समय तक युद्ध चला था. शंखासुर के वध के बाद जैसे ही युद्ध समाप्त हुआ भगवान विष्णु बहुत ज्यादा थक गए थे इसलिए युद्ध समाप्त होते ही वह क्षीरसागर में जाकर सो गए और इसके बाद वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे.
देवोत्थान एकादशी व्रत कथा
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था, एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला: महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा
उस व्यक्ति ने उस समय हाँ कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा: महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा मैं भूखा ही रह जाऊंगा, मुझे अन्न दे दो।
राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को तैयार नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा: आओ भगवान! भोजन तैयार है, उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुँचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए, उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया राजा ने कारण पूछने पर बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता
यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ; वह बोला: मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूँ, पूजा करता हूँ, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए! राजा की बात सुनकर वह बोला: महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लेवें, राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए, अंत में उसने कहा: हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा,
लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा, प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा देख भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो इससे राजा को ज्ञान मिला वह भी स्वच्छ भावना से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ,
देवउठनी एकादशी के संबंध में “एक पौराणिक कथा” काफी प्रचलित है जिसके अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से पूछती हैं कि स्वामी आप रात-दिन जगते ही हैं या फिर लाखों-करोड़ों वर्ष तक योग निद्रा में ही रहते हैं आपके ऐसा करने से संसार के सभी प्राणियों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है मां लक्ष्मी ने भगवान विष्षु से कहा कि आपसे अनुरोध है कि आप नियम से हर साल निद्रा लिया करें. इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा
लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- ‘देवी! तुमने ठीक कहा, मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है, और मेरे कारण तुमको जरा भी आराम नहीं मिलता.अतः तुम्हारे कथनअनुसार मैं प्रतिवर्ष ४महीने बारिश के मौसम में सो जाया करूंगा. मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी. मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी. इस काल में जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन और उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं आपके साथ निवास करूंगा.’
ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन दान करना बहुत अच्छा होता है. अगर हो सके तो एकादशी के दिन गंगा स्नान अवश्य करें. अगर विवाह करने में परेशानी आ रही है तो इन बाधाओं को दूर करने के लिए एकादशी के दिन केसर, केला और हल्दी का दान करना चाहिए. मान्यता है कि एकादशी का उपवास रखने से धन, मान-सम्मान और संतान सुख के अलावा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.एवं पूर्वजों को मोक्ष मिलता है. देवोत्थान एकादशी का वर्णन स्कंद पुराण और महाभारत में भी है. ऐसा कहा जाता है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा सर्वश्रेष्ठ एकादशी और उसके महात्व के प्रश्न पर भगवान श्रीकृष्ण उन्हें बताया कि मानव कल्याण के लिए वैसे तो सभी एकादशी का खास महत्व है, लेकिन चातुर्मास के पश्चात श्रीहरि जागृत अवस्था में आने के पश्चात एक बार पुनः ब्रह्माण्ड का कार्य संचालन संभालते हैं. इसलिए उनका षोडशोपचार विधि से पूजा अनुष्ठान करना आवश्यक होता है. इस व्रत-पूजा से जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी हो होती है.
देवोत्थान एकादशी का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसी दिन श्रीहरि के शालिग्राम विग्रह की श्री तुलसी से विवाह की परंपरा निभाई जाती है, और अगले दिन से सनातन धर्म में विवाह समेत सभी मंगल कार्य प्रारंभ हो जाते हैं l एवं आज से ही पूर्णिमा तक भीष्म पंचक प्रारंभ होता है, इस पावन दिन में संध्याकाल में प्रभु की अगर,कपूर,धुप, दीप,पुष्प से आरती करने पर दुर्घटना भय व अकाल मृत्यु का भय दुर हो जाता है l