राजकीय पशु वन भैंसे का यह कैसा सम्मान
रायपुर 27 नवंबर/ छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु वन भैंसा है। राज्य निर्माण के समय इनकी संख्या 75 थी, 2005 में 61 थी और 2006 में 12 वन भैंसे बचे। छत्तीसगढ़ वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दिया था कि हमारे पास धन की कमी थी इसके कारण से हम इनकी रक्षा नहीं कर पाए। परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या वन विभाग के पास इतनी धन की कमी है की वन भैसे के अवशेषों (ट्राफी) की भी रक्षा नहीं की जा सके?
उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के बम्हनी झोला गांव में किसी समय एक छोटे से कमरे में एक वन भैंसा के सिंग की ट्राफी सुरक्षित करके रखी गई थी। बताया जाता है कि मुंह भी वन भैंसा का ओरिजिनल था। यहाँ अन्य वन्यजीवों के अवशेषों को भी संरक्षित रखा गया था।
राज्य निर्माण के पूर्व तक यह पूर्णतः संरक्षित था परंतु बाद में इस एक कमरे के म्यूजियम का क्या हुआ पता नहीं परन्तु वन भैंसा के सिंग की ट्राफी को ‘विश्व खाद्य गोदाम’ के खुले बरांडे में रख दिया गया। कालान्तर में विश्व खाद गोडाउन भी बंद हो गया परन्तु ट्राफी बरांडे में ही रह गई। वर्तमान में इस ‘विश्व खाद्य गोदाम’ में कई अन्य वन्यजीवों के अवशेषों की भी दुर्दशा हो रही है। वन भैंसा के सिंग की ट्राफी की कंडीशन और गोडाउन की स्थिती बताती है कि जीवित तो क्या मृत वन भैंसे के अवशेषों की भी वन विभाग को चिंता नहीं है, और उसको संरक्षित रखने के लिए धन की कमी है।
रायपुर के वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) को पत्र लिखकर इसे वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित करने की मांग की है।