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अनोखी परंपरा, मन्नत पूरी होने पर नदी की धार में छोड़ा जाता है ललना

बैतूल/मध्य प्रदेश के बैतूल में वर्षों से अनोखी परंपरा चली आ रही है. मन्नत पूरी होने पर माता-पिता नवजात बच्चे को लिटाकर मां पूर्णा नदी के जल में लिटाते हैं. अनोखा नजारा हर साल कार्तिक माह की पूर्णिमा के बाद देखने को मिलता है. इन दिनों पूर्णा नदी के तट पर मन्नत पूरी होने वालों और मन्नत मांगने वालों का मेला लगा हुआ है. कार्तिक पूर्णिमा पर बड़ी संख्या में संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होने के बाद दंपति पहुंचते हैं. तट पर माता-पिता बच्चे को पालने में डालकर नदी में छोड़ देते हैं.

संतान की मनोकामना पूरी होने के बाद आते हैं लोग

जिला मुख्यालय बैतूल से करीब 65 किमी दूर भैसदेही के पास मां पूर्णा नदी है. चंद्र पुत्री यानि चंद्रमा की कन्या कहलाने वाली पूर्णा नदी भैंसदेही कस्बे के पास से निकलती है. कार्तिक मास की पूर्णिमा पर पूरे एक पखवाड़े तक नि:संतान दंपतियों और सुख समृद्धि की आस लेकर लोग मेले में आते हैं. महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश से श्रद्धालु पहुंचते हैं. चंद्रपुत्री कहलाने वाली पूर्णा नदी की उत्पति के पीछे कई पौराणिक किवदंतियां हैं. कोई इसे सप्तऋषियों की आराधना का फल बताता है तो कई मानते हैं कि इलाके मे फैले अकाल के बाद एक राजा की तपस्या से भगवान शिव ने पूर्णा को अवतरित कराया था. कहा जाता है कि कभी नदी दूध की धारा के रूप में बहा करती थी.

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