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धीरी नल जल योजना, 42 करोड़ खर्च के बाद ग्रामीण पानी को मोहताज

राजनांदगांव/ जल जीवन मिशन योजना वैसे तो लोगो की प्यास बुझाने और हर घर नल देने की सुविधा के साथ शुरू की गयी थी लेकिन राजनांदगांव जिले के अंतर्गत टेढ़े सरा क्षेत्र के 24 गांव के लिए ये योजना एक छलावे से कम नहीं। भरी गर्मी में गांव वासी कोसो दूर चलकर पानी लाने मजबूर है तो दूसरी तरफ सरकारी तंत्र है जो 42 करोड़ खर्च होने के बाद भी धीरी नल जल प्रोजेक्ट पर बात करने से बच रहा है।

भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा ये जिला किसी साधारण नेता का कार्यक्षेत्र नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का गृह जिला है। साल 2018 में राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत 24 गांव को स्वच्छ जल प्रदाय हेतु धीरी नल जल योजना की शुरुआत की गयी .जिसके लिए सबसे पहले 28 करोड 77 लाख 44 हजार रु स्वीकृत हुए लेकिन कुछ ही महीनो बाद इस कार्य में लगने वाले मेंटेनेंश के नाम पर 15 करोड़ और बढ़ा दिया गया। अर्थात कुल 42 करोड़ की लागत से ग्राम वासियो को शिवनाथ नदी का पानी इंटकवेल के माध्यम से प्रदान करना था लेकिन अधिकारियो की मनमानी के चलते न तो 24 गावो को पानी मिला और न ही ग्रामवासियो को हर जल घर योजना का लाभ। और तो और केंद्र सरकार की दो योजनाओ को एक ही जगह दिखाकर अधिकारी अपनी रोटी सेकने में लगे हैं जिस पर पूरा सरकारी तंत्र मौन बना हुआ है।

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टेढ़े सरा क्षेत्र के 24 गांव के निवासी अब तक मुख्यमंत्री, सम्बंधित विभाग के उच्च अधिकारी, विभागीय मंत्री से लेकर कलेक्टर को कई बार ज्ञापन दे चुके हैं लेकिन उन्हें समाधान के नाम पर सिर्फ झूठा दिलाशा ही दिया गया । शिकायतकर्ता लुमन साहू से Currentnews.org.in की टीम ने बात कि तो बड़े चौकाने वाली बाते सामने आयी उन्होंने बताया कि आस पास के ऐसे बहुत से गांव हैं जहां सिर्फ एक से डेढ़ फिट गड्ढा कर पाइपलाइन बिछा दी गई है जिसके चलते आधे से ज्यादा गावो की पाइपलाइन फुट चुकी है। इंटकवेळ निर्माण की स्वीकृति की गई धीरी एनीकट के लिए जबकि अधिकारियो ने अपनी मर्जी से ईरा गांव के समीप शिवनाथ नदी पर इंटकवेल बना दिया। इतना ही नहीं नियमानुसार इंटक वेल निर्माण हेतु शासन द्वारा अधिकृत जल आरक्षण समिति के सदस्यों को स्थल निरीक्षण करवाकर सहमति पत्र लेना भी अधिकारियो ने उचित नहीं समझा।

ग्रामीणों की शिकायत पर जब हमने गंभीरता से जाँच की तो पता चला कि केंद्र के द्वारा उक्त योजना हेतु नाबार्ड से राशि स्वीकृत की गई थी उसके बावजूद पीएचई द्वारा उसी जगह पर दो जल जीवन मिशन की भी राशि खर्च की जा रही है ताकि अपने भ्रष्टाचार को छुपाया जा सके। धीरी जल परियोजना में साल 2019 से लगातार शिकायतें हो रही थी तत्पश्चात भी कार्यपालन अभियंता एसएन पांडे, सहायक अभियंता मुकेश तिवारी, उप अभियंता तारा देवी वैष्णव के द्वारा 2020 में धीरी प्रोजेक्ट का अंतिम देयक ठेकेदार को प्रदान कर योजना का कंपलीशन सर्टिफिकेट प्रदान कर दिया गया जबकि उक्त योजना में प्राप्त शिकायतों के निराकरण के पश्चात ही ठेकेदार को अंतिम देयक प्रदान किया जाना चाहिए था जिससे प्रतीत होता है कि कहीं ना कहीं पूरे भ्रष्टाचार में इन अधिकारियों की संलिप्तता थी।

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इस विषय में जब हमने राजनांदगांव कलेक्टर डोमन सिंह से बात कि तो वो अपना पल्ला झाड़ते हुए ये कहते नजर आये कि इस पर मुझे ज्यादा जानकारी नहीं जल विभाग के अधिकारी को आपसे बात करवाता हूं। कुछ ही देर में SDO प्रिया सोनी का हमारे पास फोन आता है जिसे सुनकर ऐसा लग रहा था मानो ग्रामीणों को एक वक्त पानी पहुंचाकर विभाग एहसान कर रहा हो -” हाँ गावो में पानी की समस्या थी जिसके निवारण के लिए दूसरे एनीकेट से व्यवस्था की जा रही है उन्हें एक टाइम पानी दिया जा रहा है गर्मी के दिनों में पानी की समस्या तो आ ही जाती है।” इसके बाद जब हमने 42 करोड़ के बंदरबाट और सम्बंधित अधिकारियो की मनमानी के चलते 24 गांव की समस्या पर सवाल किये तो उनका वही रटा रटाया वाक्य मैं तो अभी यहां नई आई हूँ इस विषय पर ज्यादा जानकारी नहीं है।

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अब सवाल ये उठता है कि जब धीरी प्रोजेक्ट में 2019 से लगातार शिकायतें हो रही थी तत्पश्चात भी कार्यपालन अभियंता एसएन पांडे, सहायक अभियंता मुकेश तिवारी, उप अभियंता तारा देवी वैष्णव के द्वारा 2020 में धीरी प्रोजेक्ट का अंतिम देयक देकर ठेकेदार को कंप्लीशन सर्टिफिकेट क्यों प्रदान किया गया। उक्त योजना की जांच में आयी टीम द्वारा जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी उसे सार्वजानिक क्यों नहीं किया गया। उक्त योजना की जांच नाबार्ड के अधिकारी एवं छत्तीसगढ़ शासन के विभिन्न विभागों के तकनीकी अधिकारियों की टीम बनाकर क्यों नहीं की जा रही। ऐसे बहुत से सवाल हैं जो सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि धीरी जल योजना में बहुतो ने डुबकी लगायी है।

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