“बाघ लाना परन्तु उसे सुंदरी मत बनाना” – वन विभाग से वन्यजीव प्रेमी की अपील “वन भैसों से सबक लेना भी मत भूलना”
![“बाघ लाना परन्तु उसे सुंदरी मत बनाना” - वन विभाग से वन्यजीव प्रेमी की अपील “वन भैसों से सबक लेना भी मत भूलना” 1 Sundari is the only tigress who returned to her home Kanha National Park in 2021](https://currentnews.org.in/wp-content/uploads/2022/12/sundari.jpg)
रायपुर/ यह निर्विवादित है कि 2010 के पश्चात उठाए गए बाघ संरक्षण के कार्यों से देश में बाघों की संख्या बढ़ रही है। परंतु यह भी सत्य है की पिछली एक शताब्दी में बाघों की 95% हिस्टोरिकल रेंज खत्म हो गई है। ऐसे में बढ़ते हुए बाघ कहां जाएं? 600 वर्ग किलोमीटर वाले ताडोबा-अँधेरी टाइगर रिज़र्व में ये समस्या हो रही है। इलाके की समस्या के कारण उनका आपस में द्वन्द बढेगा। ऐसे में जहां संख्या बढ़ रही है वहां से आवश्यक कुछ बाघों को ट्रांसलोकेट करके उचित रहवास में भेजा जाना सही कदम प्रतीत होता है। जहां बाघ खत्म हो गए है वहां टाइगर रिकवरी किया जाना भी उचित प्रतीत होता है।
कल छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड की मीटिंग थी, जहाँ छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभ्यारण में टाईगर इंट्रोडक्शन और बाघों के रिकवरी प्लान पर ख्याति प्राप्त वन्यप्राणी संस्था से “आवास उपयुक्तता रिपोर्ट” अर्थात Habitat Suitability Report बनवाने पर सैद्धांतिक अनुमति दी गई है। इसी प्रकार अचानकमार टाइगर रिजर्व (ATR) में टाइगर रिकवरी के लिए अध्ययन कराया जावेगा। बाद में एनटीसीए (राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण) की अनुमति से बाघों को लाया जाएगा।
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ATR में अभी भी कुछ टाइगर है, अन्य कुछ कान्हा और बांधवगढ़ तक से आना जाना करते हैं और ATR हिन्दुस्तान का सबसे महत्वपूर्ण टाइगर कोरीडोर का हिस्सा है। इसलिए इस बात की कोई गारंटी नहीं रहेगी कि यहाँ बाघ ला के छोड़े जाने पर वे यहीं के निवासी बन जायेंगे, फिर भी दूसरे टाइगर रिज़र्व की बढ़ी संख्या को ATR लाया जाना स्वागत योग्य हो सकता है परन्तु अभी भी ATR से 25 में से 19 गावों का विस्थापन लंबित है, जो कि 2019-2020 तक पूरा हो जाना चाहिए था। विस्थापन पर बातों के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है।
सुंदरी की कहानी: बारनवापारा के लिए जो भी अध्ययन कराएं उसमें सुंदरी को मत भूलना
छत्तीसगढ़ से लगे उड़ीसा में सत्कोसिया टाइगर रिजर्व है, किसी जमाने में यहाँ टाइगर रहते थे। परंतु बहुत साल पहले सब खत्म हो गए। ग्रामीण भूल गए और नई पीढ़ियों को नहीं सिखा पाए कि टाइगर के साथ कैसे रहते है, कैसे Co-exist करते है? इसी बीच में एनटीसीए के साथ मिलकर उड़ीसा में वर्ष 2018 में बांधवगढ़ से 4 वर्ष की बाघिन सुंदरी और कान्हा से महावीर बाघ को टाइगर रिकवरी के लिए सत्कोसिया लाया गया। बहुत प्रचार प्रसार किया गया। कुछ दिनों बाद दोनों को जंगल में छोड़ दिया गया। महावीर भाग्यशाली था, शिकारियों ने जल्द ही मार दिया नहीं तो उसका हाल भी सुंदरी समान होती।
सुंदरी से दुर्भाग्यवश Chance Encounter में दो जनहानि हो गई। बस उड़ीसा में बवाल मच गया, नेता-मंत्री सामने आ गए। सुंदरी को पकड़ कर नंदनकानन भुवनेश्वर जू में कैद कर दिया गया। बाद में दिल्ली की एक महिला ने जबलपुर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें कोर्ट ने आदेशित किया कि सुंदरी को वापस मध्यप्रदेश लाकर छोड़ने का प्रयत्न किया जाए। 2022 में सुंदरी नंदनकानन से कान्हा लाई गई, वहां के डॉक्टर ने कहा कि सुंदरी में 100% शिकार करने के गुण बाकी है परंतु उसने हुमन इमप्रिंटिंग (मानव छाप)
बहुत ज्यादा हो गई है। जू का जो कर्मचारी खाना खिलाने आता है, उसके पास तक वह चली आती है। ऐसे में निर्णय लिया गया कि सुंदरी को अब आजीवन भोपाल के जू में रखा जाएगा और खेद है वह दुर्भाग्यशाली भोपाल में आजीवन कैद की सजा काट रही है।
आपको देखने मिल गए होते महावीर और सुंदरी
यह बहुत दुखद है, दिल को छू लेता है कि एक जानवर जिसका कोई कसूर नहीं था, वह मानव के ख्वाब और इच्छा की पूर्ति के लिए, मानव द्वारा बिना समस्या को समझे, दूसरे जगह भेज दी जाती है। जहां के लोग टाइगर के साथ रहना पीढ़ियों से भूल चुके हैं और जहाँ डेवलपमेंट ने टाइगर बर्दाश्त करना नामुमकिन कर दिया है। अगर इस मुद्दे पर, सुंदरी और महावीर को सत्कोसिया भेजे जाने के पहले विचार किया गया होता तो शायद आज दोनों अपनी अपनी जगह पर अपने कुनबे बढ़ाते होते और आपको कान्हा और बांधवगढ़ में अपने शावकों के साथ शायद देखने मिल गए होते।
कैसा है बारनवापारा अभ्यारण
बोर्ड की बैठक में बताया गया कि बारनवापारा अभ्यारण में 12 साल पहले तक बाघ था परंतु शायद तब वह एक ही बचा बाघ था। बारनवापारा 12 साल में बहुत बदल गया है। अभ्यारण के चारों तरफ गावों का बहुत दबाव है। गांव में पक्के मकान बन गए हैं। बार में धान उपार्जन केंद्र बन गया है, खेतों में सोलर लग गए हैं। इन गांव में गाड़ियों की संख्या देखकर आश्चर्य होता है। बारनवापारा अभ्यारण एक ऐसा अभ्यारण है जहां पर दूसरे जंगलों के समान जानवर शाम को बहुत कम निकलते हैं। जब मानव की गतिविधियां गावों में कम हो जाती है तब बफर में वे बाहर निकलते हैं। यह उनके स्वभाव के विपरीत है, अमूनन दूसरे जंगलों में शाकाहारी शाम को कुछ चरके आराम करते हैं। जानवरों के शिकार करने के लिए 11 केवी लाइन में हुकिंग कर शिकार यहाँ आम बात है, इसमें हाथी भी मारे जा रहे है। कोर एरिया तक में पानी में यूरिया मिला कर शिकार होता है।
यह भी निर्विवादित है की बारनवापारा अभ्यारण शिकारियों का गढ़ है। अभी कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान यहां बहुत शिकार की धटनाओं की खबर आती रही। हर साल होली में जब वन अमला थोड़ा सुस्त हो जाता है तो शिकारियों की बन आती है।
बाघों को चना-चुनी खाने वाले वन भैंसा समान मत बना देना
बारनवापारा अभ्यारण में बाघ लाए जाते हैं तो बाघों की लड़ाई डेवलपमेंट से होगी और दूसरी लड़ाई मानव के साथ सह-अस्तित्व अर्थात कोएक्जिस्टेंस की। अगर अध्ययन में इन बिंदुओं पर गौर किया जाए तो उचित होगा। ख्याति प्राप्त वन्यप्राणी संस्था से “आवास उपयुक्तता रिपोर्ट” बनवाई जाये तो बिना सत्यापन किये रिपोर्ट स्वीकारी न जाये। जैसा कि वन भैसों का संरक्षण-संवर्धन करने वाले एक बड़े NGO से वन भैसों के लिए बारनवापारा अभ्यारण हेतु “आवास उपयुक्तता रिपोर्ट” बनवाई गई, जिसमें वन भैसों के लिए बारनवापारा अभ्यारण उपयुक्त बताया गया। उसके बाद 2 वन भैसों को असम से लाकर 25 एकड़ के बाड़े में आजीवन कैद कर के रख दिया गया है, जहाँ वो वन विभाग द्वारा किये जा रहे चना-चुनी खा कर जिन्दा है। जंगल का प्राकृतिक मिनरल नहीं मिल पाने के कारण सप्लीमेंट दीया जा रहा है। वन विभाग के पास इन वन भैसों की “आवास उपयुक्तता रिपोर्ट” के अलावा कुछ नहीं है। उन्हें जंगल में कब-कहां छोड़ा जायेगा कोई प्लान नहीं है। परन्तु वन विभाग को यह शर्म की बात नहीं लगती, अब वो नामीबिया से लाये चीतों की तुलना असम से लाये वन भैसों के साथ गर्व से कर रहे हैं।
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स्वागत करना चाहिए अगर
और अगर सब सही पाया जाता है तो हमें ऐसे बाघ रिकवरी प्लान का स्वागत करना चाहिए। आवश्यक गावों को शिफ्ट पहले करना चाहिए और सभी बिजली लाइन कवर्ड कंडक्टर की होनी चाहिए। हमारे यहां कुछ युवा अधिकारी हैं जो यह कार्य दिल से कर सकते हैं, एनटीसीए में भी कुछ बहुत गंभीर अधिकारी हैं। परन्तु बाघ लाये जाने के पूर्व एक पालिसी और बनानी पड़ेगी कि फील्ड डायरेक्टर स्तर तक का जो आधिकारी बाघ लाने में दिलचस्प है और उस में कार्य करना चाहता है, वे बाघ लाये जाने के बाद तब तक वही रहेगा जब तक प्रोजेक्ट सफल नहीं हो जाता और बाघ सफलता पूर्वक रहवास अपना न ले, ग्रामीण साथ रहना सीख न जाये। वन्यजीव में रूचि रखने वाले अधिकारी के बाद रूचि न रखने वाला अधिकारी आ जाये तो किया कराया चोपट कर देते हैं। एक बात और बाघ लाये जाये की पूर्व सभी नेताओं को सहमत होना पड़ेगा कि Chance Encounter पर जनहानि होने वे लाये गए बाघ को सुंदरी नहीं बनायेंगे, वोट की राजनीती नहीं करेंगे।
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लेखक -नितिन सिंघवी
(वन्यजीव प्रेमी)