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अब तक वनांचल के 1959 हेक्टेयर से अधिक भूमि उपचारित

रायपुर, 25 अगस्त 2023/ छत्तीसगढ़ में कैम्पा की वार्षिक कार्ययोजना के अंतर्गत विगत 4 वर्षों के दौरान वनांचल में स्वीकृत 30-40 मॉडल के 1 लाख 80 हजार संरचनाओं का निर्माण प्रगति पर है। इनमें से अब तक पूर्ण हुए लगभग 1 लाख 54 हजार संरचनाओं से वनांचल के 1959 हेक्टेयर से अधिक भूमि का उपचार हो चुका है। इसके तहत 30-40 मॉडल के समस्त 1 लाख 80 हजार संरचनाओं के निर्माण से वनांचल के लगभग 2395 हेक्टेयर अनउपजाऊ तथा बंजर भूमि को उपचार का लाभ मिलेगा।

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नरवा विकास कार्यक्रम में कैम्पा की वार्षिक कार्ययोजना 2019-20 के अंतर्गत 30-40 मॉडल में कुल स्वीकृत 56 हजार 126 संरचनाओं में से अब तक समस्त 56 हजार 126 संरचनाओं का निर्माण पूर्ण हो चुका है। इसी तरह वार्षिक कार्ययोजना 2020-21 के अंतर्गत 30-40 मॉडल में कुल स्वीकृत 57 हजार 341 संरचनाओं में से अब तक 49 हजार 891 संरचनाओं का निर्माण पूर्ण कर लिया गया है। इसके अलावा कैम्पा की वार्षिक कार्ययोजना 2021-22 के अंतर्गत 30-40 मॉडल में कुल स्वीकृत 53 हजार 463 संरचनाओं में से अब तक 38 हजार 562 संरचनाओं का निर्माण पूर्ण हो चुका है। इसी तरह कैम्पा की वार्षिक कार्ययोजना 2022-23 के अंतर्गत 30-40 मॉडल में कुल स्वीकृत 12 हजार 698 संरचनाओं में से अब तक 9 हजार 906 संरचनाओं का निर्माण पूर्ण कर लिया गया है।

नरवा विकास योजना में इसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने बताया कि यह संरचना वनांचल के लिए काफी उपयोगी है। इसके मद्देनजर उन्होंने राज्य के वनांचल स्थित उछले भागों अथवा ढलान क्षेत्रों में 30-40 मॉडल के निर्माण कार्यों को प्राथमिकता से शामिल करने के निर्देश दिए है।

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गौरतलब है कि नरवा विकास योजना के तहत बनाए जा रहे 30-40 मॉडल के बारे में प्रधान मुख्य वन संरक्षक व्ही. श्रीनिवास राव ने बताया कि वनांचल के जिन क्षेत्रों में मिट्टी की गहराई बहुत ही कम होती है तथा मुरमी मिट्टी, हल्की पथरीली भूमि, अनउपजाऊ भूमि, छोटे झाड़ों के वन और बंजर भूमि में यह मॉडल बहुत उपयुक्त है।

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इसके निर्माण से कुछ दिनों के पश्चात् उक्त क्षेत्रों की भूमि उपजाऊ होने लगती है। 30-40 मॉडल में वर्षा जल को छोटे-छोटे चोकाकर मेड़ों के माध्यम से एक 7 ग् 7 ग् 3 फीट के गड्डे में भरते हैं और इसे श्रृंखला में बनाने से उक्त स्थल में नमी अतिरिक्त समय तक बनी रहती है। इस पद्धति में कार्य करने से वर्षा के जल को काफी देर तक रोका जा सकता है।

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